Kedarnath Yatra Full Information In Hindi केदारनाथ यात्रा की पूरी जानकारी हिन्दी मे
केदारनाथ मंदिर का इतिहास एवं मान्यता
स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान भोलेनाथ ने स्वयं माता पार्वती जी से केदार नाथ क्षेत्र के महत्व और पुरातनता के बारे में यह कहा था कि यह स्थान बहुत ही पुराना है। इस स्थान पर, भगवान भोलेनाथ ने ब्रह्मांड के निर्माण के लिए ब्रह्मा का दिव्य रूप धारण किया और ब्रह्मांड का निर्माण करना शुरू किया, तब से यह स्थान भगवान भोलेनाथ का पसंदीदा स्थान बन गया था। यह केदारखंड उनका अतिप्रिय निवास होने के कारण धरती पर स्वर्ग के समान लगता है।
भारत के द्वादस ज्योतिर्लिंग में, उत्तराखंड के सीमांत जिले रुद्रप्रयाग के उत्तरी भाग में स्थित बर्फीली चोटी पर्वत श्रृंखलाओं के बीच में, ज्योतिर्लिंग को श्री केदारनाथ एकादश के रूप में जाना जाता है और हिमालय की गोद में स्थित होने की बजह से केदारनाथ ज्योतिर्लिंगों में सर्वोपरि है माना गया है। यह माना गया है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल के बाद पांडवों ने करवाया था। यह निर्विवाद सत्य है कि लगभग 80 फीट ऊंचे इस विशाल मंदिर में स्थापत्य कला का बहुत ही सुन्दर प्रदर्शन किया गया है। मंदिर में उपयोग किए गए पत्थर स्थानीय ही हैं इन्हें कहीं और से नही लाया गया था । जिन पर सुंदर नक्काशी की गई है और मंदिर का आकार चतुष्कोणीय है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान शिव शंकर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग एक बड़ी चट्टान के रूप में मौजूद है। गरवगृह के बाहर मां पार्वती जी की पत्थर की मूर्ति है। सभामंडप में पंच पांडव, भगवान श्री कृष्ण और माता कुंती जी की मूर्तियाँ बनी हुई हैं। मुख्य द्वार पर गणेश भगवान जी और श्री नंदी की पत्थर की मूर्तियां हैं। परिक्रमा पथ में अमृत कुंड भी है। इस पथ के पूर्व भाग में भैरवनाथ जी की पत्थर की मूर्ति भी विराजमान है।

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केदारनाथ उत्तराखंड राज्य के रुद्र हिमालय श्रेणी में स्थित है। यह 3,581 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यह रुद्रप्रयाग, गौरीकुंड के निकटतम ससे 16 किमी की दूरी पर है।
उत्तराखंड मे भगवान भोलेनाथ के सैकड़ो मंदिर हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण मन्दिर रुद्रप्रयाग में केदारनाथ धाम है। कहावत के अनुसार, कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों पर विजय प्राप्त करने के बाद, पांडवों ने अपने ही परिजनों को मारने का दोषी महसूस किया पांडवों ने सोचा कि हमने ये पाप किया है इसका प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद मांगने और पूजा अर्चना के लिए केदारनाथ धाम में शरण ली
कहा जाता है कि भगवान शिव के शेषअन्य भाग चार स्थानों पर प्रकट हुए थे और उनकी उपस्थिति के रूप में वहां पूजा की जाती है। शंकर भगवान की भुजाएँ तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, पेट मदमहेश्वर में और उनके बाल (बाल) कल्पेश्वर में प्रकट हुए। केदारनाथ और चार उपर्युक्त मंदिरों को पंचकेदार माना गया है।
केदारनाथ धाम का मंदिर एक भव्य दृश्य में दिखाई देता है , जो ऊंचे बर्फ से ढकी बहुत ही बड़ी बड़ी चोटियों से घिरे एक विस्तृत पहाड़ के बीच में खड़ा है। मंदिर मुख्य रूप से आटवीं शताब्दी में जगद गुरु श्री आदि शंकराचार्य द्वारा बनाया गया था और यह पांडवों द्वारा निर्मित एक पहले के मंदिर के निकट स्थित है। सभा हॉल की भीतरी दीवारों को अन्य देवी देवताओं की आकृतियों चित्रकला और पौराणिक कथाओं के दृश्यों से सजाया गया है। मंदिर के दरवाजे के बाहर नंदीमहाराज की एक बड़ी मूर्ति रक्षक के रूप में गेट के बाहर स्थित है।
भगवान शिवशंकर को समर्पित, केदारनाथ मंदिर में उत्कृष्ट वास्तुकला है, जो पत्थरों के बहुत बड़े, भारी और समान रूप से कटे हुए सफेद रंग के स्लैब से निर्मित है, यह आश्चर्य करने की बात है कि इन भारी पत्थरों को पुराने ज़माने में कैसे इतनी ऊंचाई पर ले जाया और संभाला गया था। मंदिर में पूजा के लिए गर्भ गृह और तीर्थयात्रियों और आगंतुकों की सभा के लिए उपयुक्त मंडप है। मंदिर के अंदर एक शंक्वाकार मूर्ति की पूजा भगवान शिव के रूप में एवं सदाशिव के रूप में की जाती है।
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केदारनाथ धाम में सर्दियों के मौसम में बहुत ही भारी हिमपात ,बर्फ की बारिश होती है और केदारनाथ मंदिर नवंबर महीने से लेकर अप्रैल माह तक बर्फ से ढका रहता है। इस बजह से हर साल सर्दियों के मौसम की शुरुआत में,जो लगभग नवंबर के पहले सप्ताह में शुरू होता है ।
एक शुभ दिन एवं शुभ तिथि जिसे भगवान भोलेनाथ की पवित्र प्रतीकात्मक मूर्ति द्वारा पूजन एवं पूरे विधि विधान से किया जाता है, केदारनाथ मंदिर से ऊखीमठ नामक स्थान पर ले जाया जाता है, जहां इन्हें भगवान शिव के रूप में पूजा जाता है। ऊखीमठ में पूजा और अर्चना हर साल नवंबर से मई के माह तक की जाती है।
मई माह में भगवान शिव की प्रतीकात्मक प्रतिमा को ऊखीमठ से केदारनाथ वापस ले जाया जाता है और मूल स्थान पर विराजमान किया जाता है। बड़ी धूमधाम और महापूजन के बाद मंदिर के दरवाजे एवं पट तीर्थयात्रियों के लिए खोल दिए जाते हैं, केदारनाथ में यात्री भारत के सभी हिस्सों से पवित्र तीर्थयात्रा के लिए आते हैं। मंदिर आम तौर पर कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) के पहले दिन बंद हो जाता है और हर साल वैशाख (अप्रैल – मई महीने ) में मंदिर फिर से खुल जाता है।
केदारनाथ यात्रा करने का सही मौसम समय
सर्दी (अक्टूबर से अप्रैल)
सर्दियों में यहाँ बहुत ही ठण्डे दिन होते हैं। न्यूनतम तापमान शून्य से नीचे के स्तर को छू जाता है और भारी बर्फबारी केदारनाथ धाम में बहुत आमबात है। यात्रा के लिए ये महीने सही नहीं हैं।
गर्मी के महीनों में (मई से जून)
ग्रीष्म ऋतु (मई से जून माह) मध्यम ठंडी जलवायु के साथ यात्रा बहुत सुखद और आनंदमय होती है। ग्रीष्मकाल गर्मियों के महीने सभी दर्शनीय स्थलों और पवित्र केदारनाथ तीर्थ यात्रा के लिए बहुत ही उचित समय हैं
मानसून (जुलाई से मध्य सितंबर) नियमित बारिश का होना होता है और तापमान में भी गिरावट आ आ जाती है। यह क्षेत्र कभी-कभार भूस्खलन की चपेट में भी आ जाता है और यात्रा करना मुश्किल हो सकता है। इसलिए इसकी जानकारी जाते समय अवश्य करें
केदारनाथ जाने का सबसे अच्छा समय – मई, जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर, नवंबर
केदारनाथ धाम के पवित्र मंदिर के पट मई से अक्टूबर/नवंबर तक लोगों के दर्शन के लिए खुला रहते हैं
उतराखण्ड का यह क्षेत्र बहुत ही सुखद और ठंडी गर्मी का आनंदमय अनुभव कराता है । जबकि सर्दियाँ बहुत ज्यादा सर्द और ठंडी होती हैं और बर्फबारी केदारनाथ में एक नियमित घटना है।
केदारनाथ यात्रा कैसे करें
हवाई जहाज द्वारा:
केदारनाथ धाम से नजदीकी हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है जो देहरादून से 35 किलोमीटर दूर स्थित है ।
केदारनाथ का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा दैनिक यात्री उड़ानों के साथ दिल्ली से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहाँ से हर रोज यात्री जहाज उड़ान भरते हैं ।
जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से प्राइवेट कार बस टेक्सी द्वारा आसानी से गौरीकुंड पहुंचा जा सकता है ।
ट्रेन द्वारा केदारनाथ यात्रा : गौरीकुंड का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है।
ऋषिकेश रेलवे स्टेशन NH58 पर गौरीकुंड से 243 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश भारत के सभी मुख्य रेलवे स्टेशनों द्वारा अच्छी तरह से कनेक्ट है। ऋषिकेश के लिए ट्रेनें हर रोज आती हैं।
गौरीकुंड ऋषिकेश के साथ मोटर योग्य सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
ऋषिकेश, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, टिहरी और कई अन्य स्थानों से गौरीकुंड के लिए टैक्सी प्राइवेट कार और बसें हमेशा उपलब्ध रहती हैं।
सड़क मार्ग द्वारा: गौरीकुंड उत्तराखंड राज्य के प्रमुख स्थलों के साथ मोटर योग्य सड़कों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आईएसबीटी कश्मीरी गेट नई दिल्ली से हरिद्वार, ऋषिकेश और श्रीनगर के लिए बसें उपलब्ध हैं। उत्तराखंड राज्य के प्रमुख स्थलों जैसे देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, टिहरी आदि से गौरीकुंड के लिए बसें और टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं। रुद्रप्रयाग से दो रास्ते है एक रास्ता केदारनाथ और दूसरा रास्ता बदरीनाथ जाता है ! रुद्रप्रयाग एवं गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 58 से जुड़ा हुआ है । जो बहुत ही अच्छा सड़क मार्ग है
केदारनाथ मन्दिर मे पूजा
केदारनाथ मंदिर की सभी पूजा पाठ,आरती एवं भोग आदि के लिए ऑनलाइन बुकिंग करवाना आवस्यक होता है जिसके लिए केदारनाथ मंदिर की ऑफिशियल वेबसाइट उपलब्ध हैं। केदारनाथ मंदिर की वेबसाइट पर आप मोबाइल फोन से ही रजिस्ट्रेशन करके आसानी से बुकिंग कर सकते हैं ।
श्री केदारनाथ यात्रा में ठहरने की व्यवस्था
केदारनाथ यात्रा में आसपास की जगहों पर ठहरने के लिए निम्नलिखित ऑप्शन उपलब्ध हैं।
कई संगठनों एवं धार्मिक संस्थाओं की धर्मशालाएं नाममात्र के छोटे से शुल्क पर मिल जाती हैं
टैंट केम्प :
केदारनाथ मंदिर के पास नीचे से चढ़ाई करने के बाद आपको ठहरने के लिए टेंट भी छोटे से किराए पर उपलब्ध हो जाते हैं जिनमे प्रति व्यक्ति के हिसाब से भाड़ा लिया जाता है ।
वहीँ पास में ही आपको नहाने की व्यवस्था भी मिल जाती है ऊपर कुंड भी बना हुआ है
केदारनाथ के आस-पास के स्थानों पर होटल्स
श्री केदारनाथ धाम बहुत ही ऊंचाई पर बना हुआ है, इसलिए तीर्थयात्री निम्नलिखित स्थानों पर ठहर सकते हैं और हेलीकॉप्टर/पिट्टू , खच्चर द्वारा मात्र एक ही दिन की यात्रा में केदारनाथ दर्शन पूरा कर सकते हैं।
सीतापुर सोनप्रयाग के पास
केदारनाथ से लगभग 20 किमी की दूरी पर ही सीतापुर में कई होटल उपलब्ध हैं।
सोनप्रयाग और गुप्तकाशी में
कई गेस्ट हाउस सोनप्रयाग और गुप्तकाशी दोनों में उपलब्ध हैं। जो कि आपको आसानी से मिल जाते हैं
बहुत ही ज्यादा महत्व्पूर्ण प्र्श्न जो केदार्नाथ यात्रा मे आपको जानना जरूरी है जो निम्न है
केदारनाथ मन्दिर का समय क्या है ?
06:00 AM to 01:00 PM & 05:00 PM to 7:30 PM
केदारनाथ मन्दिर का नजदीकी रेल्वे स्टॆशन कोनसा है ?
ऋषिकेश 228 किलो मीटर
केदारनाथ की पैदल चढ़ाई कितनी है ?
गौरीकुंड से केदारनाथ 16 किलोमीटर की ऊंची चडाई पर है
सोनप्रयाग से गौरीकुंड: कितने किलोमीटर है ?
सोनप्रयाग से गौरीकुंड 5 किलोमीटर की दूरी पर है
गुप्तकाशी से सोनप्रयाग कितने किलोमीटर है ?
गुप्तकाशी से सोनप्रयाग 31 किलोमीटर है
रुद्रप्रयाग से गुप्तकाशी कितने किलोमीटर है ?
रुद्रप्रयाग से गुप्तकाशी 45 किलोमीटर है
श्रीनगर से रुद्रप्रयाग कितने किलोमीटर है ?
श्रीनगर से रुद्रप्रयाग 32 किलोमीटर है ?
देवप्रयाग से श्रीनगर कितने किलोमीटर है ?
देवप्रयाग से श्रीनगर 35 किलोमीटर है ?
ऋषिकेश से देवप्रयाग कितने किलोमीटर है ?
ऋषिकेश से देवप्रयाग 71 किलोमीटर है ?
हरिद्वार से ऋषिकेश कितने किलोमीटर है ?
हरिद्वार से ऋषिकेश 24 किलोमीटर है
दिल्ली से हरिद्वार कितने किलोमीटर है ?
दिल्ली से हरिद्वार 250 से 300 किलोमीटर है
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